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कौन है?-

"अब तुम सारी बात समझे हो। यह बात आज से पहले मैंने किसी को नहीं बताई क्योंकि मेरी बात को आज के दौर में कोई मानने वाला नहीं था। लेकिन तुम्हारे साथ जो घटनाएं घटी है वह सभी इसी काली हवेली का काला सच हुआ करती थी।" "अब मुझे यह बताओ उस मनहूस हवेली के मुख्य द्वार को बंद करने के लिए हमें क्या करना होगा?" "उस ताले को अब सिर्फ एक ही इंसान बंद कर सकता है और वो है जिसने अपनी मां की कोख से उल्टे पैर जन्म लिया हो ऐसा बच्चा।" "फिर तो अपना काम बन गया! बताइए इस काम के लिए कौन सा वक्त सही रहेगा?" "कल रविवार है बेटे! और इससे अच्छा दिन हमारे लिए कोई और नहीं हो सकता। लेकिन उल्टे पैर जन्मा बच्चा कहाँ है?" "वो बच्चा मैं हूँ चाचा जी। उस मनहूस हवेली को मै ही बंद कर दूँगा।"

"कल सुबह जितना हो सके जल्दी हमें काली हवेली पहुंचना है। दिन निकलने से पहले हमने हवेली को दोबारा ताला लगा दिया तो शैतानी आत्माएं फिर से हवेली में कैद होकर रह जाएगी। क्योंकि अब वह हवेली ऐसी कई सारी मलिन आत्माओ का ठिकाना बन चुकी है।" "फिर ठीक है चाचा जी आज मैं यही रुक जाता हूँ। सुबह जल्दी से जल्दी उठ कर हम काली हवेली पहुँच जाएंगे।" "ठीक है!" गौरी प्रसाद ने आरव की बात कबूल कर ली। लेकिन अभी भी एक सवाल उसके दिमाग में गोते लगा रहा था। वो ये था कि पिछले जन्म में मंजूलिका यानी कि नगरवधू बालिका हत्याओं के लिए जिम्मेदार थी तो उसे इस जन्म में शैतानी रूहने क्यों बक्श दिया?" सवाल काफी पेचीदा था! उसका जवाब पाना आरव के लिए जरूरी बन गया था।  क्योंकि निर्मोही के सपनों से शुरू हुआ खौफ़नाक घटनाओं का सिलसिला आरव रोकना चाहता था। वो काफी डर गया था। निर्मोही की मां के पिछले जन्म के कर्मों का साया कहीं निर्मोही की जिंदगी न छीन ले। हवेली में इंतजार करती शैतानी आत्माएं को बंधक बना ने का मन बना के आरव सो गया। उसे यकीन था की अगले दिन सूरज निकलने से पहले वह मौत के सिलसिले को रोक लेगा। मगर कल किसने देखा हैं। सुबह के पाँच बज रहे थे। रातभर मोहन के घर सोने वाला है यह बात कॉल से अपने घर बता दी थी। पूरी रात उसकी सुबह के इंतजार में कटी थी। काली हवेली बहुत ही डरावनी नजर आ रही थी। अंधेरे में कहीं से चमगादड़ों की आवाजें दोनों को चौकन्ना कर देती थी। चारों तरफ सन्नाटा होने के बावजूद ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई उनके साथ साथ चल रहा हो। काली पहाड़ी किसी बड़े राक्षस की तरह अपनी जगह पर बुत बनकर खड़ी थी। मोहन के पिता गौरी प्रसाद के हाथों में मौजूद छोटी सी टॉर्च ने रास्ते में अच्छा साथ दिया।  दोनों जैसे ही हवेली के करीब पहुँचे एक अजीब सी हलचल उन्हें महसूस हुई। जैसे सोए हुए निशाचर जीव करवट लेने लगे थे। हवा का कहीं नामोनिशान नहीं था फिर भी पेड़ पौधों में हुई सरसराहट से दोनों संभल गए। हवेली के कोटर में दूर-दूर से उल्लू की डरावनी आवाज सुनाई देने लगी थी। "तुम जानते हो ना आरव— अब हमें क्या करना है?" "हाँ, बिना डरे हवेली के मुख्य द्वार की और आगे बढना है, कुछ भी हो जाए मुझे सिर्फ मुख्य दरवाजे को ताला लगाना है।" "हवेली की शैतानी आत्माएं काफी समय के बाद आजाद हुई है तो इतनी जल्दी काबू में आने वाली नहीं है। अपने बचाव के लिए हाथ-पैर जरुर मारेगी। हो सकता है तुम्हें भ्रमित करें। तुम्हारे दिमाग को कंट्रोल करने की कोशिश करें बस तुम्हें खुद को कमजोर पड़ने देना नहीं है। जरा सी भी गफलत में रहे तो तुम अपने साथ मुझे भी खत्म कर दोगे।" "मैं, जानता हूँ चाचा जी। आप की नसीहत को नहीं भूलूंगा। अगर मुझे शैतानी आत्माएं अपने मकसद से भटकाने की कोशिश करें तो आप मुझे संभाल लेना।" "आरव, पहली बात तो तुम्हें नर्वस होने की जरूरत नहीं है। इंसान का सबसे बड़ा लूजप्वाइंट उसकी नर्वसनेस ही होती है जिसके कारण कोई भी उसके दिमाग को आसानी से कंट्रोल कर सकता है। इसलिए तुम्हें खुद को इस तरीके से मजबूत बना कर रखना है कि सामने कोई भी हो तुम्हें कुछ भी फर्क नहीं पडना चाहिए।" "ठीक है मैं ख्याल रखूँगा।" आरव धीमी आवाज में बोला था।  हवेली के दरवाजे पर पहुँचते ही चाचा जी रुक गए। उन्होने आरव को लॉक बंद करने का संकेत दिया। आरव जैसे ही आगे बढा दरवाजा अपने आप ही खुल गया तो आरव जहाँ खडा था वही बुत बन गया। उसका दिल धाड धाड करके बज रहा था।  आरव को समझते जरा भी देर न लगी कि काली हवेली की आत्माएं चौकन्नी हो चुकी थी। हालांकि पीछे मुडने का सवाल ही नहीं उठता। उसने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई और आगे बढा। गौरी प्रसाद भी पीछे टार्च लिए खडे थे। जैसे ही आरव दरवाजा बंद करने झुका की तुरंत उसे पीछे से इतनी जोर से धक्का लगा कि वह हवेली के अंदर जा गिरा।  उसके हाथों से मोबाइल कहीं छूट गया था। वह अंधेरे में अपने हाथ पैर मारने लगा। हवेली के उस अंधेरे कमरे में किसी की भयानक हँसी गूँजने लगी।  आरव को जबरदस्त झटका लगा था। उसे मोहन के पिता जी ने धक्का देकर हवेली के अंधेरे कमरे में धकेल दिया था। उसकी समझ में नही आ रहा था चाचा जी ने उसके साथ ऐसा क्यों किया? "चाचा जी!" आरव जोर से चिल्लाया।  बंद कमरे में आरव की आवाज गुंज कर रह गई। भयानक हँसी की आवाजें उसके कान के पर्दे चीर रही थी। उसने इधर उधर हाथ पैर मारे तो उसे अपना मोबाइल मिल गया।  (क्रमश:)

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

30-Sep-2023 10:30 PM

Nice one

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madhura

27-Sep-2023 10:05 AM

Awesome

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Anjali korde

27-Sep-2023 10:03 AM

Amazing

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